हनुमान धारा, चित्रकूट

                   हनुमान धारा, चित्रकूट 

     

मित्रों पिछले आर्टिकल में मैंने आपको रामघाट एवं कामदगिरि के परिक्रमा का विस्तार पूर्वक वर्णन किया। अब हम चित्रकूट में स्थित प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों में से एक हनुमान धारा के बारे में जानेंगे तो आइए जानते है आखिर क्या महत्व है चित्रकूट में हनुमान धारा का-

हनुमान धारा रामघाट से ३ कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहां जाने के लिए हमें रामघाट से ही साधन मिल जाते है। तो आइए चलते है मन रूपी आंखों से अंजना पुत्र महाबली हनुमान के दर्शन करने और उनकी महिमा के बारे जानते है।               

हनुमान धारा पहुंचते ही हमें पूरे पर्वत के सम्पूर्ण दर्शन होते है। यहां पर्वत के नीचे छोटी सी बस्ती है जो दुकानों के माध्यम से अपने परिवार का पालन पोषण करते है। आपको नीचे ही प्रसाद मिलता है। वहीं से आप प्रसाद लेते है और अपने चप्पल जूतों कि वही कर देते है। अब आगे हम दर्शन के लिए निकलते है। तो हम सीधे सीढियां चढ़ते है। सीढ़ियों को चड़कर हम जैसे जैसे मंदिर के समीप पहुंचते है तो वहां का दृश्य बहुत ही मनोरम लगता है। नीचे के छायाचित्र में आप वह मनोरम दृश्य देख सकते है।

अब हम मंदिर के समीप पहुंच चुके है। यहां काले बंदर बहुत मिलते है इसलिए आपको उनको कुछ ना कुछ खिलाने के लिए ले जाना चाहिए। आइए अब हम मंदिर अंदर श्री प्रभु के दर्शन करते है।

उपर के छ्याचित्र में आप श्री बजरंगबली के दर्शन अलग एंगल से देख पा रहे है। यही है श्री बजरंगबली की प्रतिमा जो कि यहां युग- युगांतर से यही है। आइए अब जानते है यहां के बारे में-

यहां ऐसा कहना है या मानना है कि जब प्रभु राम का राज्याभिषेक हो गया तो रामभक्त हनुमान जी ने अपने प्रभु से याचना कि- हे प्रभु जब मै माता सीता की खोज में गया था तो वहां जब लंका को अपनी पूंछ के आह से जलाई थी तो उस अग्नि की जलन मेरे शरीर में आज तक विद्यमान है। प्रभु श्री राम बोले कि हे हनुमान आप चित्रकूट में जाकर मंदाकिनी नदी के समीप एक पर्वत है। वहां जाकर १००८ बार मंत्रो का जाप करों तो आपको आराम मिल जाएगा। श्री बजरंगबली बिना डर किए यहां आए और १००८ बार श्री राम रक्षा स्त्रोत का जाप किया। जाप पूरा होते ही पर्वत के गर्भ से एक शीतल जल कि धारा निकली और उनके बायी भुजा पर गिरी जिससे उनके सारे कष्ट मित गए। तब से श्री बजरंगबली यही विराजित है और आज भी साल के ३६५ दिन एक ही लय में जल की धारा उनके बाएं भुजा पर गिरती रहती है। यहां आकर दर्शन मात्र से मानव के सारे कष्टों का हरण हो जाता है। तभी से इस इस पर्वत का नाम हनुमान धारा पद गया।

यहां से आगे बढ़ने पर हमें एक झरना मिलता है जो कि पहाड़ से हमेशा बहता रहता है इसे पताल गंगा के नाम से जाना जाता है। यहां का पानी पहाड़ में ही विलीन हो जाता है। यहां पर माता लक्ष्मी की प्रतिमा विराजमान है। यहां पर ऐसा मानना है कि झरने में पैसे का गुप्त दान करने पर माता लक्ष्मी की कृपा से आपको किसी भी प्रकार की दरिद्रता नहीं आती और सुख समृद्धि बनी रहती है।अब हम यहां से आगे बढ़ेंगे तो उपर की ओर एक रास्ता दिखता है।

यह रास्ता सीता रसोई के लिए जाता है। यहां उपर जाने पर हमें सीता जी की रसोई के दर्शन होते है। कहते है यहां आज भी माता सीता जी के रसोई का सामान आज भी रखा है और उसका दर्शन हमें मिलता है।



यह पर्वत पठार के आकर में है। यहां उपर एक बस्ती भी है। जहां लोग रहते है और सामान्य जीवन यापन करते है। इस गांव का नाम पुखरवार है। यह पर्वत ३८.२ वर्ग कि.मी. में फैला है। यह पर्यटन स्थल मध्यप्रदेश के अन्तर्गत आता है। इस पर्वत में ही दूसरी तरफ एक और गंगा कि धारा निकलती है जिसे कोटि तीर्थ गंगा के नाम से जाना जाता है। यहां का जल लोग ले जाते है और उनका मानना है कि यह कई तरह के असाध्य रोगों में दावा का काम करता है। इस कोटि तीर्थ के बारे में कहना है कि यहां सतयुग से ही ऋषि मुनि तप किया करते थे और आज भी करते है। हनुमान धारा के साथ ही कोटि तीर्थ का भी दर्शन करना चाहिए।

श्री बजरंगबली को इन नामों से भी जाना जाता है

1. आंजनेया : अंजना का पुत्र

2. महावीर : सबसे बहादुर

3. हनूमत : जिसके गाल फुले हुए हैं

4. मारुतात्मज : पवन देव के लिए रत्न जैसे प्रिय

5. तत्वज्ञानप्रद : बुद्धि देने वाले

6. सीतादेविमुद्राप्रदायक : सीता की अंगूठी भगवान राम को देने वाले

7. अशोकवनकाच्छेत्रे : अशोक बाग का विनाश करने वाले

8. सर्वमायाविभंजन : छल के विनाशक

9. सर्वबन्धविमोक्त्रे : मोह को दूर करने वाले

10. रक्षोविध्वंसकारक : राक्षसों का वध करने वाले

11. परविद्या परिहार : दुष्ट शक्तियों का नाश करने वाले

12. परशौर्य विनाशन : शत्रु के शौर्य को खंडित करने वाले

13. परमन्त्र निराकर्त्रे : राम नाम का जाप करने वाले

14. परयन्त्र प्रभेदक : दुश्मनों के उद्देश्य को नष्ट करने वाले

15. सर्वग्रह विनाशी : ग्रहों के बुरे प्रभावों को खत्म करने वाले

16. भीमसेन सहायकृथे : भीम के सहायक

17. सर्वदुखः हरा : दुखों को दूर करने वाले

18. सर्वलोकचारिणे : सभी जगह वास करने वाले

19. मनोजवाय : जिसकी हवा जैसी गति है

20. पारिजात द्रुमूलस्थ : प्राजक्ता पेड़ के नीचे वास करने वाले

21. सर्वमन्त्र स्वरूपवते : सभी मंत्रों के स्वामी

22. सर्वतन्त्र स्वरूपिणे : सभी मंत्रों और भजन का आकार जैसा

23. सर्वयन्त्रात्मक : सभी यंत्रों में वास करने वाले

24. कपीश्वर : वानरों के देवता

25. महाकाय : विशाल रूप वाले

26. सर्वरोगहरा : सभी रोगों को दूर करने वाले

27. प्रभवे : सबसे प्रिय

28.  बल सिद्धिकर : बलवान बनने की सिद्धि 

29. सर्वविद्या सम्पत्तिप्रदायक : ज्ञान और बुद्धि प्रदान करने वाले

30. कपिसेनानायक : वानर सेना के प्रमुख

31. भविष्यथ्चतुराननाय : भविष्य की घटनाओं के ज्ञाता

32. कुमार ब्रह्मचारी : युवा ब्रह्मचारी

33. रत्नकुण्डल दीप्तिमते : कान में मणियुक्त कुंडल धारण करने वाले

34. चंचलद्वाल सन्नद्धलम्बमान शिखोज्वला : जिसकी पूंछ उनके सर से भी ऊंची है

35. गन्धर्व विद्यातत्वज्ञ : आकाशीय विद्या के ज्ञाता

36. महाबल पराक्रम : महान शक्ति के स्वामी

37. काराग्रह विमोक्त्रे : कैद से मुक्त करने वाले

38. शृन्खला बन्धमोचक: तनाव को दूर करने वाले

39. सागरोत्तारक : सागर को उछल कर पार करने वाले

40. प्राज्ञाय : विद्वान

41. रामदूत : भगवान राम के राजदूत

42. प्रतापवते : वीरता के लिए प्रसिद्ध

43. वानर : बंदर

44. केसरीसुत : केसरी के पुत्र

45. सीताशोक निवारक : सीता के दुख का नाश करने वाले

46. अन्जनागर्भसम्भूता : अंजनी के गर्भ से जन्म लेने वाले

47. बालार्कसद्रशानन : उगते सूरज की तरह तेजस

48. विभीषण प्रियकर : विभीषण के हितैषी

49. दशग्रीव कुलान्तक : रावण के राजवंश का नाश करने वाले

50. लक्ष्मणप्राणदात्रे : लक्ष्मण के प्राण बचाने वाले

51. वज्रकाय : धातु की तरह मजबूत शरीर

52. महाद्युत : सबसे तेजस

53. चिरंजीविने : अमर रहने वाले

54. रामभक्त : भगवान राम के परम भक्त

55. दैत्यकार्य विघातक : राक्षसों की सभी गतिविधियों को नष्ट करने वाले

56. अक्षहन्त्रे : रावण के पुत्र अक्षय का अंत करने वाले

57. कांचनाभ : सुनहरे रंग का शरीर

58. पंचवक्त्र : पांच मुख वाले

59. महातपसी : महान तपस्वी

60. लन्किनी भंजन : लंकिनी का वध करने वाले

61. श्रीमते : प्रतिष्ठित

62. सिंहिकाप्राण भंजन : सिंहिका के प्राण लेने वाले

63. गन्धमादन शैलस्थ : गंधमादन पर्वत पार निवास करने वाले

64. लंकापुर विदायक : लंका को जलाने वाले

65. सुग्रीव सचिव : सुग्रीव के मंत्री

66. धीर : वीर

67. शूर : साहसी

68. दैत्यकुलान्तक : राक्षसों का वध करने वाले

69. सुरार्चित : देवताओं द्वारा पूजनीय

70. महातेजस : अधिकांश दीप्तिमान

71. रामचूडामणिप्रदायक : राम को सीता का चूड़ा देने वाले

72. कामरूपिणे : अनेक रूप धारण करने वाले

73. पिंगलाक्ष : गुलाबी आंखों वाले

74. वार्धिमैनाक पूजित : मैनाक पर्वत द्वारा पूजनीय

75. कबलीकृत मार्ताण्डमण्डलाय : सूर्य को निगलने वाले

76. विजितेन्द्रिय : इंद्रियों को शांत रखने वाले

77. रामसुग्रीव सन्धात्रे : राम और सुग्रीव के बीच मध्यस्थ

78. महारावण मर्धन : रावण का वध करने वाले

79. स्फटिकाभा : एकदम शुद्ध

80. वागधीश : प्रवक्ताओं के भगवान

81. नवव्याकृतपण्डित : सभी विद्याओं में निपुण

82. चतुर्बाहवे : चार भुजाओं वाले

83. दीनबन्धुरा : दुखियों के रक्षक

84. महात्मा : भगवान

85. भक्तवत्सल : भक्तों की रक्षा करने वाले

86. संजीवन नगाहर्त्रे : संजीवनी लाने वाले

87. सुचये : पवित्र

88. वाग्मिने : वक्ता

89. दृढव्रता : कठोर तपस्या करने वाले

90. कालनेमि प्रमथन : कालनेमि का प्राण हरने वाले

91. हरिमर्कट मर्कटा : वानरों के ईश्वर

92. दान्त : शांत

93. शान्त : रचना करने वाले

94. प्रसन्नात्मने : हंसमुख

95. शतकन्टमदापहते : शतकंट के अहंकार को ध्वस्त करने वाले

96. योगी : महात्मा

97. मकथा लोलाय : भगवान राम की कहानी सुनने के लिए व्याकुल

98. सीतान्वेषण पण्डित : सीता की खोज करने वाले

99. वज्रद्रनुष्ट : व्रज से दानव और दुष्टों को मारने वाले 

100. वज्रनखा : वज्र की तरह मजबूत नाखून

101. रुद्रवीर्य समुद्भवा : भगवान शिव का अवतार

102. इन्द्रजित्प्रहितामोघब्रह्मास्त्र विनिवारक : इंद्रजीत के ब्रह्मास्त्र के प्रभाव को नष्ट करने वाले

103. पार्थ ध्वजाग्रसंवासिने : अर्जुन के रथ पार विराजमान रहने वाले

104. शरपंजर भेदक : तीरों के घोंसले को नष्ट करने वाले

105. दशबाहवे : दस्द भुजाओं वाले

106. लोकपूज्य : ब्रह्मांड के सभी जीवों द्वारा पूजनीय

107. जाम्बवत्प्रीतिवर्धन : जाम्बवत के प्रिय

108. सीताराम पादसेवा : भगवान राम और सीता की सेवा में तल्लीन रहने वाले।  


बोलिए बजरंगबली की जय…………..

                                             - एम. के. तिवारी


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