स्फटिक शिला चित्रकूट
मित्रो हमने पिछले आर्टिकल में रामघाट, कामदगिरि पर्वत और हनुमान धारा के बारे में विस्तार से जाना है।
अब हम चित्रकूट के एक और दर्शनीय और रमणीय स्थल के बारे में जानेंगे जिसका नाम स्फटिक शिला है।
चित्रकूट में स्फटिक शिला का भी अपना अलग महत्व है। स्फटिक शिला में लोगों का कहना है कि भगवान राम जब यहां चित्रकूट में वास कर रहे थे तो एक दिन भगवान राम माता सीता का श्रृंगार कर रहे थे। तभी वहां से श्री ब्रह्मा जी का मानस पुत्र वायु मार्ग से जा रहा था। तो उसकी नजर नीचे बैठे प्रभु राम पर पड़ी। उसने मन में सोचा कि क्या यही वो प्रभु राम है जिनके बारे में देवलोक में चर्चा होती रहती है। सभी देवता और गंधर्व जिनकी जय जयकार दिन-रात करते हुए थकते नहीं है। उसने ऐसा सोचकर उनके बारे में जानना चाहा और नीचे आ गया। जयंत ने प्रभु राम की महानता को जानने के लिए कौवे का भेष बनाकर और जाकर माता सीता जी के चरणों में चोच से प्रहार किया और वहां से भाग निकला। यह देखकर प्रभु राम शिला से उठे और पास पड़ा कांस का तिनका उठाया और अभिमंत्रित करके जयंत के पीछे छोड़ दिया। जयंत उसके आग से जलने लगा और उसकी जलन से बचने के लिए और तेज़ भागने लगा। जयंत ने उस तिनके रूपी बाण से बचने के लिए तीनों लोको का भ्रमण किया लेकिन किसी ने उसकी सहायता नहीं की। फिर वह अंत में ब्रह्मा जी के पास गया और बोला कि प्रभु मेरी रक्षा करे तब ब्रह्मा जी बोले जयंत तुमने ऐसे प्राणी से विरोध लिया है जिसका सामना किसी ने नहीं किया। तो हे जयंत तुमने अभी देखा प्रभु का क्रोध जिसका सामना तीनों लोकों में किसी ने नहीं किया अब जाओ प्रभु का प्रताप भी देख लो। वरना इस सीक के बाण से तुम्हे कोई नहीं बचा सकता। यह सुनकर जयंत सीधे आकर प्रभु के चरणों में गिर पड़ा और क्षमा याचना करने लगा। तब प्रभु बोले कि हे जयंत तुमने जो अपराध किया है वह क्षमा करने योग्य नहीं है इसलिए तुम्हे दंड भोगना ही पड़ेगा। तब प्रभु ने उसी सीक के बाण से उसकी एक आंख फोड़ दी। तभी से सारे कौवे एक आंख से काने होते है और उन्हें एक आंख से ही दिखाई देता है। यह घटना यही हुई थी और प्रभु राम और सीता जिस पत्थर पर बैठे थे वह स्फटिक की थी। तभी से इसका नाम स्फटिक शिला पड गया। यह स्थान मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित है। यहां नदी में मछली बहुत है इसलिए जब भी जाए तो इन्हे दाना जरूर खिलाए। यहां का दृश्य बहुत ही मनोरम है।
आज भी यहां साक्ष्य विद्यमान है।
प्रेम से बोलिए जय जय श्री राम…………
- एम. के. तिवारी
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